Header Ads Widget

Responsive Advertisement

कर्णसिंह (चित्तौड़गढ़ : एक संक्षिप्त परिचय)

 


समरसी के बाद उनकी पाटण राणी से उत्पन्न करणसिंह सन् 1193. ई. में राज्य का उत्तराधिकारी बना। कर्णसिंह के पश्चात् मेवाड़ के राज्य परिवार की दो शाखाएँ बन गई, एक "रावल" व दूसरी "राणा शाखा । कर्णसिंह के ज्येष्ठ पुत्र क्षेमसिंह के वंशज "रावल" कहलाये जिन्होंने चित्तौड़ पर शासन किया। इसी शाखा में रावल रतनसिंह हुए थे। कर्णसिंह के छोटे पुत्र राहप से "राणा" शाखा का प्रारम्भ होता है। राहप ने मंडोर के शासक पड़िहार मोकल को मेवाड़ के सिसोदा गांव के पास, बन्दी बनाने के उपलक्ष में “राणा" की उपाधि धारण की और तभी से उनके वंशधर “राणा" कहलाने लगे। राणा शाखा में भीमसिंह, जयसिंह, लक्ष्मण सिंह व अरिसिंह आदि हुए है। राणा लक्ष्मणसिंह अपने ज्येष्ठ पुत्र अरिसिंह व अन्य सात पुत्र सहित अलाउद्दीन खिलजी के विरूद्ध लड़ते हुए काम आये थे। राजा अरिसिंह का पुत्र हमीर था जिसने खिलजी के अधिकार से चित्तौड़ के किले को पुनः मुक्त करवाया।

Post a Comment

0 Comments

 कुम्भश्याम का मन्दिर